Tana-Riri Festival

Tana-Riri Festival: गुजरात की अद्वितीय संगीत परंपरा की गौरवगाथा

Tana-Riri Festival गुजरात के मेहसाणा जिले के ऐतिहासिक नगर वडनगर में हर साल आयोजित होने वाला एक प्रसिद्ध सांगीतिक महोत्सव है। यह आयोजन न सिर्फ संगीत की परंपरा को जीवित रखने का प्रयास है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत को भी दर्शाता है। वडनगर, जो अपनी कलात्मकता, संगीत, गायन, वादन और नृत्य की प्राचीन परंपरा के लिए प्रसिद्ध है, आज भी उसी जोश के साथ इस परंपरा को संजोए हुए है।

Tana-Riri Festival

वडनगर की सांस्कृतिक पहचान

वडनगर नगर 550 साल पुरानी नागर ब्राह्मणों की संगीत परंपरा का केंद्र रहा है। यहां के लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी संगीत को जिया है। साल 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने Tana-Riri Festival की औपचारिक शुरुआत की थी। इसके बाद से यह महोत्सव गुजरात राज्य संगीत नाटक अकादमी और स्थानीय प्रशासन द्वारा हर वर्ष आयोजित किया जाता है।

ताना-रीरी की प्रेरणादायक गाथा

तानसेन, जो मुगल सम्राट अकबर के दरबार में नौ रत्नों में से एक थे, ने जब दीपक राग गाया तो उनके शरीर में अत्यधिक गर्मी उत्पन्न हो गई। इस राग को गाने के प्रभाव से शरीर जलने लगता है। इस पीड़ा से राहत पाने के लिए तानसेन मल्हार राग की खोज में भारत भर में भटके। उसी दौरान उन्हें वडनगर की दो बहनों — ताना और रीरी — के बारे में पता चला, जो संगीत में अत्यंत निपुण थीं।

ताना-रीरी की बलिदान गाथा

तानसेन ने ताना और रीरी से अनुरोध किया कि वे मेघ मल्हार राग गाएं जिससे उनके शरीर की आग शांत हो सके। दोनों बहनों ने हाटकेश्वर मंदिर में राग गाया और जैसे ही स्वर गूंजे, आसमान में बादल छा गए और वर्षा होने लगी। तानसेन की पीड़ा मिट गई।

बादशाह अकबर जब इस घटना से प्रभावित हुए तो उन्होंने ताना-रीरी को दिल्ली बुलाने के लिए सेनापति भेजे। परंतु जब बहनों ने दिल्ली जाने से इनकार कर दिया, तब उन्हें बलपूर्वक ले जाने की कोशिश की गई। इसके विरोध में उन्होंने आत्मबलिदान को चुना। ताना और रीरी ने पूजा-अर्चना के बाद अग्निस्नान कर आत्मबलिदान दिया। आज भी वडनगर में उनकी समाधि उनके इस बलिदान की गवाही देती है।

ऐतिहासिक संदर्भ और पारिवारिक पृष्ठभूमि

तानसेन को बचाने वाली ताना और रीरी, भक्त कवि नरसिंह मेहता की वंशज थीं। नरसिंह मेहता की पुत्री कुंवरबाई की बेटी शर्मिष्ठा के यहां इन दोनों बहनों ने जन्म लिया। शर्मिष्ठा झील, जो वडनगर में स्थित है, इन्हीं के नाम पर है। यह दर्शाता है कि वडनगर न सिर्फ व्यापार और शिक्षा का केंद्र था बल्कि कला-संस्कृति का भी समृद्ध स्थल रहा है।

ताना-रीरी संगीत महोत्सव का आयोजन

वडनगर स्थित ताना-रीरी समाधि स्थल पर प्रतिवर्ष Tana-Riri Festival का आयोजन बड़े उत्साह से किया जाता है। यह आयोजन संगीत प्रेमियों और कलाकारों के लिए एक विशेष मंच होता है जहां शास्त्रीय गायन और वादन की प्रस्तुतियां होती हैं। साथ ही, इस अवसर पर प्रतिष्ठित कलाकारों को ताना-रीरी पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।

सम्मानित कलाकारों की सूची

ताना-रीरी पुरस्कार उन गायकों और संगीतज्ञों को दिया जाता है जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत में अद्वितीय योगदान दिया है:

  • 2010: लता मंगेशकर और उषा मंगेशकर
  • 2011-12: पद्म भूषण गिरिजा देवी
  • 2012-13: किशोरी अमोनकर
  • 2013-14: बेगम परवीन सुल्ताना
  • 2014-15: डॉ. प्रभा अत्रे
  • 2016-17: मंजूबेन मेहता
  • 2017-18: डॉ. ललित राव, आशा भोसले
  • 2018-19: विदुषी सुष्मी रूपांडे शाह
  • 2019-20: अश्विनी भिंडे व पीयू सरखेल
  • 2020-21: अनुराधा पोंडवाल व वर्षाबेन त्रिवेदी

ऐतिहासिक प्रमाण और सांस्कृतिक गहराई

वडनगर का इतिहास भी उतना ही गहरा है जितना इसका संगीत। 641 ईस्वी में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस शहर का दौरा किया था। शिलालेखों में 37 अक्षरों वाली ब्राह्मी लिपि में इसका प्रमाण भी मिलता है। प्राचीन काल में यहां लगभग 400 परिवार संगीत और रंगमंच से जुड़े थे, जिससे यह नगर सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध था।

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निष्कर्ष

Tana-Riri Festival केवल एक संगीत महोत्सव नहीं, बल्कि यह एक आदर्श उदाहरण है भारतीय स्त्रियों की संगीत साधना, आत्मबलिदान और सांस्कृतिक चेतना का। यह महोत्सव हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और भारतीय शास्त्रीय संगीत की अमूल्य परंपरा को आगे बढ़ाता है। वडनगर आने वाले हर व्यक्ति के लिए यह स्थान एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव बन जाता है।

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